हितग्राही
- विश्वविद्यालयों के शोध छात्र, पत्रकार
- पत्रकार
- पत्रकारिता एवं जनसंचार के विद्यार्थी
- लेखक
- जनसंपर्क संस्थान
- सामान्य जिज्ञासु
- विज्ञान संचारक
- प्राध्यापक
शोध के आयाम
पत्रकारिता, जनसंचार; विज्ञान एवं पर्यावरण संचार; साहित्य - हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, मराठी, अँगरेजी; इतिहास, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, समाजशास्त्र, कला और संस्कृति, शिक्षा आदि ।
दुर्लभ संदर्भ सामग्री - भारत का स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, महापुरुषों का कृतित्व और व्यक्तित्व, पत्र साहित्य, अनूदित साहित्य, पाण्डुलिपियाँ, लोक विज्ञान और परंपरागत ज्ञान ।
महत्व
माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल देश में राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहर के संग्रहण और संरक्षण का अनूठा और अद्वितीय संस्थान है । यहाँ संग्रहीत पुराने समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की इबारतों में इतिहास को रू-ब-रू देखने का रोमांच अनुभव किया जा सकता है। भारत में पत्रकारिता का उद्भव और विकास नवजागरण के साथ-साथ हुआ है। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, विज्ञान आदि विविध विषयों की महत्वपूर्ण घटनाओं, उनकी पृष्ठभूमि और उनके फलितार्थों के प्रामाणिक स्रोत समकालीन पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठों में विद्यमान हैं।
भारतीय पत्रकारिता के ऐतिहासिक दस्तावेजों के संग्रहण तथा शोध संचार की नवाचारी पहल का अप्रतिम उदाहरण गढ़ने के लिए सप्रे संग्रहालय को संस्कृति विभाग ने 'महर्षि वेद व्यास राष्ट्रीय सम्मान' (वर्ष 2012-2013) से सम्मानित किया है ।
ज्ञान कोश
विगत वर्षों (1984–2019 ) में माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल में पाँच करोड़ पृष्ठों से अधिक शोध संदर्भ के लिए महत्वपूर्ण सामग्री संचित की गई है। संचित सामग्री में हिन्दी, उर्दू, अँगरेजी, मराठी, गुजराती, संस्कृत भाषाओं की संदर्भ सामग्री बहुतायत से है।
- 26,290 शीर्षक समाचार पत्र और पत्रिकाएँ
- 1,66,222 संदर्भ ग्रंथ और पुस्तकें (सन 1900 से पहले के प्रकाशन - 2010)
- 1934 अन्य दस्तावेज
- 5605 संदर्भ फाइलें
- 284 लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकारों - पत्रकारों - शिक्षाविदों के 25,300 पत्र
- 3000 पाण्डुलिपियाँ
- 200 रेडियो, ग्रामोफोन, कैमरे, फोन, टाइपराइटर आदि पुराने उपकरण
देश भर का भरोसा
सप्रे संग्रहालय का ज्ञान–कोश समृद्ध करने में देश भर के एक हजार से अधिक विद्या अनुरागी परिवारों की सहभागिता है। इनमें प्रमुख हैं – पुणे से पं. माधवराव सप्रे – डा. अशोक सप्रे; जबलपुर से पं. कामता प्रसाद गुरु – रामेश्वर गुरु; खण्डवा से दादा माखनलाल चतुर्वेदी – श्री बृजभूषण चतुर्वेदी, मुंबई से डा. धर्मवीर भारती – श्रीमती पुष्पा भारती; दिल्ली से श्री जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी, श्री वीरेन्द्र त्रिपाठी, बेंगलुरु से श्री नारायणदत्त; चेन्नै से डा. बालशौरि रेड्डी; जयपुर से श्री राजेन्द्र शंकर भट्ट; कोलकाता से डा. कृष्णबिहारी मिश्र; प्रयागराज से डा. उदयनारायण तिवारी, डा. शिवगोपाल मिश्र; पटना से डा. श्रीरंजर सूरिदेव; ग्वालियर से श्री यशवंत नारायण मोघे; भोपाल से श्री भवानीप्रसाद मिश्र – सुश्री नंदिता मिश्र; जबलपुर से रायबहादुर हीरालाल – डा. छाया राय, सेठ गोविन्ददास – बाबू चंद्रमोहन दास, श्री देवीदयाल चतुर्वेदी ‘मस्त‘, श्री रामानुजलाल श्रीवास्तव – सुश्री साधना उपाध्याय, श्री हुक्मचंद नारद – श्री निर्मल नारद, डा. जगदीशप्रसाद व्यास, श्री अमृतलाल वेगड़ । डीएवी कालेज कानुपर से इतिहास के सैकड़ों महत्वपूर्ण ग्रन्थ आए । आगरा का एक सौ साल पुराना चिरंजीव पुस्तकालय 2015 में सप्रे संग्रहालय भोपाल का अंग बना। इस प्रकार पाँच करोड़ पन्नों से अधिक शोध संदर्भ सामग्री सप्रे संग्रहालय में संग्रहीत हुई। यह सिलसिला जारी है।
मान्यता
देश भर से विश्वविद्यालयीन शोध छात्र माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल की संदर्भ संपदा का लाभ उठाने आ रहे हैं। अनेक विश्वविद्यालयों ने शोध केन्द्र के रूप में मान्यता भी प्रदान की है।
- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर
- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल
- कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर
शोधार्थी
माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल में संचित सामग्री का सन्दर्भ –लाभ उठाते हुए सात शोधार्थियों ने डी.लिट. तथा 1238 शोधार्थियों ने पीएच.डी. और एम. फिल. उपाधियों के लिए थीसिस पूरी की हैं । लाभान्वितों में देश–विदेश के शोध छात्र सम्मिलित हैं ।
संरक्षण
सप्रे संग्रहालय में जर्जर पाण्डुलिपियों और अन्य संदर्भ सामग्री के संरक्षण के लिए माइक्रोफिल्मिंग, लेमिनेशन, जिल्दसाजी आदि प्रविधियाँ अपनाई गई हैं।
मध्यप्रदेश जनसंपर्क ने सप्रे संग्रहालय में संरक्षित जयाजीप्रताप (1905), मध्य भारत संदेश (1950-55 ) और मध्यप्रदेश संदेश (1956-2019) का डिजिटाइजेशन करा दिया है।
सप्रे संग्रहालय में संग्रहीत पाण्डुलिपियों और अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रन्थों, पत्र-पत्रिकाओं का डिजिटाइजेशन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के माध्यम से कराया है। यह प्रथम चरण है।
सनद
वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया प्राध्यापक डा. कृपाशंकर चौबे ने ‘ज्ञान-तीर्थ सप्रे संग्रहालय' डाक्यूमेंट्री बनाई है। यूट्यूब पर दुनिया भर में प्रसारित इस डाक्यूमेंट्री को 'ज्ञान तीर्थ सप्रे संग्रहालय' टाइप कर देखा जा सकता है।
महात्मा गांधी के 150वें जन्मवर्ष में भारतीय डाक मध्यप्रदेश परिमण्डल ने सप्रे संग्रहालय पर विशेष कवर (16 नवंबर 2018) जारी किया।
'भारतीय पत्रकारिता कोश' सप्रे संग्रहालय ने लगभग डेढ़ दशक तक 'भारतीय पत्रकारिता कोश' शोध परियोजना पर कार्य किया। श्री विजयदत्त श्रीधर द्वारा लिपिबद्ध 'भारतीय पत्रकारिता कोश' (दो खण्डों में) वाणी प्रकाशन, नईदिल्ली ने प्रकाशित किया है। ‘भारतीय पत्रकारिता कोश' के प्रथम खण्ड में सन 1780 से 1900 तक तथा दूसरे खण्ड में सन 1901 से 1947 तक की भारतीय पत्रकारिता का इतिवृत्त दर्ज है। भारत में सभी भाषाओं के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का प्रामाणिक वृत्तांत लिपिबद्ध करने के साथ-साथ भारतीय नवजागरण की सभी गतिविधियों का यथा प्रसंग उल्लेख इस ग्रंथ में हुआ है। सन 1947 तक का भारत इस शोध - अध्ययन का भूगोल रहा है।
'पहला संपादकीय' - हिन्दी पत्रकारिता के 185 बरस (1826-2010 ) के कालखंड में जिन प्रवृत्तियों, मंतव्यों और संकल्पों का उद्घोष पत्र-पत्रिकाओं के प्रवेशांक में पहले संपादकीय के माध्यम से किया गया, दरअसल, वह अपने समय की दिशा और दशा का दस्तावेज है। ऐसी प्रतिनिधि संपादकीय टिप्पणियों का संचयन इस पुस्तक में किया गया है। उनके संदर्भ स्पष्ट किए गए हैं। साथ ही, पुरोधा संपादकों के पत्रकारिता विषयक व्याख्यानों और आलेखों का समावेश भी सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक में हुआ है। इस पुस्तक को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 'भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार' से सम्मानित किया है।
'समकालीन हिन्दी पत्रकारिता' (संपादक - विजयदत्त श्रीधर ) का प्रकाशन सन 2018 में सामयिक प्रकाशन, नईदिल्ली ने किया। इस पुस्तक में स्वतंत्रता के बाद की हिन्दी पत्रकारिता का अध्ययन हुआ है।
'आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता' (लेखक - डा. मंगला अनुजा) - महिला पत्रकारिता पर हिन्दी में पहला व्यापक अध्ययन और शोध। विद्याबिहार, नईदिल्ली से प्रकाशित। मूलतः डी.लिट. की थीसिस। महिला पत्रकारिता के महत्वपूर्ण किरदारों और प्रकाशनों का सूचीकरण हुआ।
'स्वामी श्रद्धानंद और उनका पत्रकार कुल' ( लेखक - डा. विष्णुदत्त राकेश) - हिन्दी पत्रकारिता में आर्य समाज की पत्र-पत्रिकाओं और संपादकों के महत्वपूर्ण अवदान का वृत्तान्त । प्रभात प्रकाशन, नईदिल्ली से प्रकाशित।
'मध्यप्रदेश की उर्दू सहाफत इब्तेदा और इरतका' (शौकत रमूजी, कमर जमाली), 'समय से साक्षात्कार', 'मध्यप्रदेशातील मराठी पत्रकारिता' (रामचंद्र विनायक हर्डीकर), 'तेवर', 'स्मृति बिंब', 'खबरपालिका की आचार संहिता', 'भारतीय पत्रकारिता नींव के पत्थर' एवं 'छत्तीसगढ़ : पत्रकारिता की संस्कार भूमि' (डा. मंगला अनुजा), 'नारायण दत्त : मन संपादक’, ‘मूर्धन्य संपादक' (संतोष कुमार शुक्ल), 'मूल्य मीमांसा' (डा. कृष्ण बिहारी मिश्र) तथा 'मध्यप्रदेश में पत्रकारिता ः उद्भव और विकास' का प्रकाशन किया गया है।
'विश्ववंद्य गांधी' - भारत के स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ देने वाले चम्पारन सत्याग्रह की शताब्दी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में सप्रे संग्रहालय ने 'विश्ववंद्य गांधी' पुस्तक का प्रकाशन किया । चम्पारन सत्याग्रह ने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा बनाया। खेती और किसानों की कठिनाइयों को राष्ट्रीय एजेण्डा में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। भारतीयों के मन-मस्तिष्क से जेल का भय समाप्त किया। इससे राष्ट्रीय जागृति का सघन और व्यापक विस्तार हुआ । सत्य और अहिंसा के अमोघ अस्त्र के माध्यम से हिंसक फिरंगी हुकूमत पर विजय प्राप्त की गई। महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलनों का नई दृष्टि से विवेचन किया गया। 'गांधी के सत्याग्रह : निहितार्थ और फलितार्थ' (डा. रामाश्रय रत्नेश) पुस्तक का प्रकाशन गांधी भवन, भोपाल ने किया। महात्मा गांधी ने मध्यप्रदेश की दस यात्राएँ कीं। उनकी हर यात्रा का विशेष संदर्भ और समाज पर स्थायी प्रभाव पड़ा। डा. शिवकुमार अवस्थी ने गांधी भवन, भोपाल के लिए इस अध्ययन को 'मध्यप्रदेश के गांधी धाम' में लिपिबद्ध किया है।
'माधवराव सप्रे रचना संचयन' - कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे के यशस्वी अवदान के दस्तावेजीकरण के लिए भारत की साहित्य अकादेमी ने ‘माधवराव सप्रे रचना संचयन' का प्रकाशन किया है। अकादेमी के लिए इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि श्री विजयदत्त श्रीधर ने तैयार की।
बीज जो बाबा ने बोया था - सन 1960 में संत विनोबा भावे की प्रेरणा से चम्बल घाटी के 20 बागियों ने आत्मसमर्पण किया था। ‘चम्बल की बन्दूकें गांधी के चरणों में' - अप्रैल 1972 में जयप्रकाश जी चम्बल घाटी में पहुँचते हैं। अप्रैल महीने की 14, 16, 17 एवं 23 तारीख और 1 मई 1972 को चम्बल घाटी के कुल 270 बागियों ने महात्मा गांधी के चित्र के समक्ष शस्त्र समर्पण किया । जे. पी. का एक ही वादा - किसी को फाँसी नहीं होगी । परन्तु कानूनी कार्यवाही का सामना करना होगा। अपराध स्वीकार करना होंगे। जिनके नाम से चम्बल घाटी काँपती थी, उन्होंने जयप्रकाशजी की सीख मानी।
विज्ञान एवं पर्यावरण संचार
विज्ञान चेतना का प्रसार, मीडिया में विज्ञान लेखन को प्रोत्साहन और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विषयों की आम पाठकों की समझ और रुचि के अनुकूल प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नईदिल्ली के सहयोग से अभियान।
वर्ष 2010-11 में 'विज्ञान एवं पर्यावरण संचार' (संपादक - माधुरी श्रीधर ) का प्रकाशन किया गया। वर्ष 2011-12 में ‘राविप्रौसंप’ के सहयोग से 'पानी की बात विज्ञान के साथ' (संपादक - माधुरी श्रीधर ) पुस्तक का प्रकाशन किया गया। गौरव मेमोरियल फाउण्डेशन के सहयोग से 'पानी, समाज और सरकार ' ( लेखक - कृष्ण गोपाल व्यास) पुस्तक प्रकाशित की गई। संस्कृत वाङ्मय के प्रकाण्ड पण्डित डा. राधावल्लभ त्रिपाठी की पुस्तकें- 'पानी की कहानी' और 'पेड़ों की दुनिया में' का प्रकाशन किया गया।
'समाज, प्रकृति और विज्ञान' पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2017 की विशेष उपलब्धि है । समाज का प्रकृति एजेण्डा के रूप में इस पुस्तक का संपादन श्री राजेंद्र हरदेनिया ने किया है।
विज्ञान लेखक एवं संचारक डा. कपूरमल जैन ने 'प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण हेतु आचार संहिता ' ( 2018 ) तैयार की, जिसका प्रदेश भर में प्रचार-प्रसार किया गया।
दुर्लभ पाण्डुलिपियाँ
श्रीमद्भागवत (पाण्डुलिपि) (1512), श्रीराम गीतावली, श्रीराम विवाहमंगल, प्रागन गीता, उमा शंभु विवाह मंगल गोस्वामी तुलसीदास, अनंत भट्टी (1724), हिरण्यकेशी चातुर्मास प्रयोग (1744 ), अष्टक पद ( 1747 ), धर्मप्रवृत्ति (1779), वृत्तार्क (1788 ), वेदार्थप्रकाश (1799 ), संहिताष्टक ( 1800), वाजसनेय संहिता ( 1809), श्रोतप्रायश्चित्त चंद्रिका (1810), तिथि दर्पण (1823), मुद्रा लक्षण पद्धति (1825), कृत्यमंजरी (1838 ), अथउत्तविशीसंहिता (1839), आपोज्ञान (1839), वाजसनीय संहिता ( 1841 ), रामचरित मानस (हस्तलिखित) (1841 ), भावप्रकाश ( 1847), संस्कार भास्कर (1849), पंचमाष्टक पद (1850), धर्मसिंधु शास्त्र ( 1852), वैद्यरत्न (1854), गंगालहरी ( 1855), झाँसी कौराइिसौलक्ष्मीवाईी की लड़ाई (1868), रुद्रार्चनपद्धति (1883), एकादशीमहात्म्य (1890), सुमन पाक्षिक (हस्तलिखित) (1932), आपोज्ञान (1939), निर्णयसिंधु, दान मंजूषा, ब्रह्मविद्या, महिम्नस्रोत, भगवत्हीता माला मंत्र, एक था राजकुमार – द्विजेन्द्रनाथ मिश्र ‘निर्गुण‘, बिरेचनमंजरी – रामप्रसाद चौबे, वैदक ग्रंथ (हस्तलिखित), संगीत प्रकीर्ण दामोदर, विनियोग विधि, तैत्तिर्यब्राह्मण भाष्य प्रथमाष्टक, ब्रह्मसूत्र भाष्य सहित पाण्डुलिपियाँ ।
दुर्लभ समाचार पत्र और पत्रिकाएँ
उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय प्रकाशन मुंबई समाचार, आगरा अखबार, देहली उर्दू अखबार, प्रभाकर, कुरान–उस– –सैदीन, ज्ञान प्रकाश, विक्टोरिया पेपर, नूर मशरिकी, सोम प्रकाश, शुभ सूचक, पूर्ण चन्द्रोदय, अखबार–ए–आलम, इन्दु प्रकाश, मेरठ गजट, महाराष्ट्र मित्र, बिहार बन्धु, देहली गजट, अखबार–ए–आम, उम्द तुल अखबार, अवध पंच, संडे मेल, सुबोध प्रकाश, रसिक पंच, प्रबोध रत्न, एडवोकेट, मुस्लिम हेराल्ड, अलीगढ़ मैगजीन, तफरीह, जैन गजट, वकील, नवरास, केसरी, इंकलाब, सांझ वर्तमान, जमाना, वन्देमातरम्, मुसलमान, प्रवासी, पिक्टोरियल गजट, आलमगीर, विदूषक, प्रजा प्रकाश, लोक संग्रह आदि।
आंचलिक पत्रकार
जनसंचार माध्यमों और विज्ञान संचार पर केन्द्रित मासिक पत्रिका ‘आंचलिक पत्रकार‘ का प्रकाशन सितंबर 1981 से जारी है। सन 1984 से पत्रिका के प्रकाशन का दायित्व सप्रे संग्रहालय वहन कर रहा है। हिन्दी भाषा में पत्रकारिता और जनसंचार, विज्ञान एवं पर्यावरण संचार और ग्रामीण संचार, विकास संचार पर विमर्श की 39 वर्ष से प्रकाशित होने वाली यह सबसे पुरानी पत्रिका है । ‘आंचलिक पत्रकार‘ को वर्ष 2012 में नेशनल साइंस लायब्रेरी ने शोध पत्रिका के रूप में मान्य किया । यह पत्रिका www.anchalikpatrakar.com पर आनलाइन पढ़ी जा सकती है।
चित्र वीथी
गांधी जयंती (2010) पर सप्रे संग्रहालय में भारतीय पत्रकारिता के मूर्धन्य संपादकों और प्रतिनिधि पत्र-पत्रिकाओं के छायाचित्रों की दीर्घा स्थापित की गई। इन चित्रों में सभी भारतीय भाषाओं के प्रतिनिधि समाचार पत्रों और पत्रिकाओं तथा युग निर्माता संपादकों के चित्रों का समावेश किया गया है।
स्मृति वाटिका
पुरखों के तर्पण को वर्तमान पीढ़ी का, पूर्वज पीढ़ी के प्रति पवित्र कर्तव्य माना जाता है। भारतीय पत्रकारिता में ऐसे अनेक महान संपादक हुए हैं जिनके बारे में उल्लेख तो मिलता है किंतु उनके कृतित्व के अनुरूप स्मारक – तुल्य कोई कार्य नहीं हुआ है। कई के बारे में तो पूरी जानकारी तक उपलब्ध नहीं है। सप्रे संग्रहालय ने 31 जुलाई 2010 को ऐसे एक सौ एक मनीषी संपादकों की स्मृति को अक्षुण्ण बनाने के लिए ‘स्मृति वाटिका‘ लगाई है।
संचालक मंडल
संचालक मंडल | ||
सरल क्रमांक | नाम | परिचय |
1 | श्री विजयदत्त श्रीधर (10.10.1948), भोपाल, पद्मश्री से सम्मानित (2012), भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार (2011) महर्षि वेदव्यास राष्ट्रीय सम्मान (2013), माधवराव सप्रे राष्ट्रीय रचनात्मक सम्मान छत्तीसगढ़ (2015) | सप्रे संग्रहालय के संस्थापक (स्थापना – जून, 1984) देशबंधु से पत्रकारिता की शुरुआत, दैनिक नवभारत के संपादक रहे। पत्रकारिता पर बीस पुस्तकों का लेखन एवं संपादन। विभिन्न विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्यान। पूर्व शोध निदेशक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (2005-10)। 1981 से पत्रकारिता एवं जनसंचार की पत्रिका ‘आंचलिक पत्रकार’ के संपादक। पत्रकारिता इतिहास के अध्येता। विज्ञान संचार, प्रकृति संरक्षण, लोक विज्ञान के लिए कार्यरत। |
2 | डा. आर. रत्नेश, (7.11.1941), भोपाल | म.प्र. शासन में अपर सचिव उच्च शिक्षा, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.) के राज्य समन्वयक, स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य रहे। बनारसीदास चतुर्वेदी मोनोग्राफ के लेखक। ‘हिन्दी पत्रकारिता की शब्द सम्पदा’ कोश के सह-संपादक। |
3 | डा. शिवकुमार अवस्थी, (29.9.1943) भोपाल | पूर्व संचालक म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, हिन्दी पत्रकारिता की शब्द संपदा कोश के सह-संपादक। ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ मोनोग्राफ के लेखक। अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के मार्गदर्शक। |
4 | श्री राजेन्द्र हरदेनिया, (13.4.1944) पिपरिया | मध्यप्रदेश में सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता के लिए सुपरिचित पत्रकार। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पिपरिया और किशोर भारती स्वैच्छिक संगठन के माध्यम से उत्कृष्ट शिक्षा और समग्र ग्रामीण विकास के लिए कार्यरत। समाज, प्रकृति और विज्ञान पुस्तक के संपादक। |
5 | डा. छाया राय,(02.02.1946) जबलपुर | एम.ए., पीएच.डी., दर्शनशास्त्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में दर्शनशास्त्र की प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष, देश-दुनिया में दर्शनशास्त्र की संगोष्ठियों में महत्वपूर्ण व्याख्यान के लिए समादृत। योग की वरिष्ठ प्रशिक्षक, अनेक पुस्तकों की लेखक। अनेक मंचों पर सम्मानित। |
6 | श्री चंद्रकांत नायडू, (03.06.1950) भोपाल | एम.ए.,अंग्रेजी, फ्री प्रेस जर्नल, इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक रहें। सुदीर्घ संपादकीय कार्यकाल में प्रामाणिकता और निष्पक्षता की छाप छोड़ी। |
7 | श्री अतुल शाह, (15.10.1956) विदिशा | विदिशा के सार्वजनिक जीवन में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित और सर्वमान्य, पत्रकारिता में 30 वर्ष से सक्रिय, बेतवा प्रदूषण मुक्ति अभियान के वरिष्ठ कार्यकर्ता |
8 | श्री राकेश दीक्षित, (7.11.1958) भोपाल | बी.एससी. एम.ए.। सन 1980 में पत्रकारिता की शुरुआत ‘हितवाद’ से। करंट, नेशनल हेरल्ड, देशबंधु, फ्री प्रेस, नेशनल मेल, सेंट्रल क्रानिकल, हिन्दुस्तान टाइम्स में कार्यरत रहे। सन् 2007 में के.पी. नारायणन अंग्रेजी पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित। रंगकर्म में विशेष अभिरुचि। |
9 | श्री राजेश बादल, (01.03.1959) | एम.ए., (इतिहास) अध्यापन, नईदुनिया और नवभारत टाइम में उच्च पदों का दायित्व निभाया। आजतक की ष्शुरुआती टीम के सदस्य, देशभर में कवरेज किया। राज्यसभा टी.वी. के संस्थापक कार्यकारी निदेशक, देशभर के विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता और जनसंचार पर व्याख्यान का सिलसिला। अनेक सम्मानों से अलंकृत लेखक और पत्रकार। |
10 | डा. राकेश पाठक, (1.10.1964) ग्वालियर पीएच. डी. | एम.एस.सी. पीएच.डी. पूर्व संपादक, नवभारत, नईदुनिया एवं ‘प्रदेश टुडे’ (ग्वालियर)। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल की शोध |
11 | डा. अल्पना गिरि, (24.04.1968) भोपाल | फैलोशिप। जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कार्यसमिति सदस्य। |
12 | श्री प्रेमनारायण नागर ( 1924 शिवपुरी) | एम.ए., पीएच.डी., एम.जे., प्राध्यापक भूगोल कई षोध परियोजनाओं का अनुभव। वरिष्ठ पत्रकार (नईदुनिया, इन्दौर), स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार (1981), पत्रकारिता क्षेत्र में सजग पत्रकारिता हेतु राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा द्वारा पुरस्कृत (जून 1997) |
13 | श्री संतोष कुमार शुक्ल, (1931, पथरौटा, इटारसी) | पूर्व अपर संचालक, जनसम्पर्क विभाग, म.प्र. म.प्र. के अग्रगण्य पत्रकारों का परिचय ग्रंथ-हस्ताक्षर का संपादन, सम्प्रति- -आंचलिक पत्रकार‘ के संपादक, माधवराव सप्रे: व्यक्तित्व एवं कृतित्व पुस्तक के लेखक। |
14 | श्री शंकरभाई ठक्कर (1936, कच्छ ) | जबलपुर शिक्षा मंडल, महाकोशल प्रचार समिति, गुजराती मण्डल ट्रस्ट, भारतीय विद्याभवन के सदस्य और सप्रे संग्रहालय सामग्री संकलन के विशिष्ट सहयोगी। |
15 | श्री शंकरलाल साबू (1940, सीहोर) | नवभारत भोपाल के जिला प्रतिनिधि, साप्ताहिक जनवाहक के संस्थापक-संपादक, करंट, हिन्दुस्तान समाचार, दैनिक भास्कर के प्रतिनिधि |
16 | डा. पदम जैन (1945, विदिशा) | दैनिक भास्कर के संवाददाता, रोटरी क्लब विदिशा के पूर्व अध्यक्ष, रेडक्रास सोसायटी एवं जिला क्षयरोग संघ के आजीवन सदस्य। |
17 | श्री अशोक मानोरिया (1946, विदिशा) | नवभारत के समाचार संपादक एवं सेन्ट्रल क्रानिकल के वरिष्ठ संवाददाता, नवभारत टाइम्स नईदिल्ली एवं समाचार भारती के संवाददाता रहे, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त। |
18 | श्री नुरुलहसन नूर (1949, गुना) | ‘देषबंधु‘, दैनिक भास्कर के जिला प्रतिनिधि, शहीद गणेषषंकर विद्यार्थी समिति और आंचलिक पत्रकार संघ के संस्थापक सदस्य |
19 | श्री विष्णु ठाकुर (1952, नरसिंहपुर) | दैनिक हितवाद ज्ञानयुग प्रकाश, दैनिक ‘देषबंधु‘ के जिला ब्यूरो प्रमुख माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता पुरस्कार, कालिकाप्रसाद दीक्षित ‘कुसुमाकर‘ स्मृति खोजी पत्रकारिता पुरस्कार, श्रेष्ठ आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार, आराधक श्री पुरस्कार। |